Jaane Kiyo Bhagavaan Shiv Shankar Ko Bhakt Ke Ghar Naukari Karani Padhee

मित्रों यह घोर कलयुग का समय है इस विपरीत काल में हरि भजन ही एकमात्र जरिया है लोग को पानी का जो हरि का नाम लेगा हरि उसे बचाने के लिए कलयुग में भी भगवान के रूप में स्वयं प्रकट होंगे इसी कड़ी में हम लेकर आए हैं कलयुग की कुछ ऐसी गाथाएं जिन्होंने धर्म में हिंदुओं के आस्था को और ज्यादा प्रबल किया है। 

तो आइए जानते हैं आखिर कियो भगवान शिव को भक्त के घर नौकरी करनी पढ़ी थी। 

 

देशभर में भगवान महादेव की कई प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है जिन से जुड़ी कई रोचक कथा सुनने को मिलती है भोले भंडारी का ऐसा ही एक मंदिर बिहार के मधुबनी जिले के भवानीपुर गांव में स्थित है जो पुरा महादेव बद्रीनाथ मंदिर के नाम से काफी प्रसिद्ध है ऐसी लोक मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव ने स्वयं मैथिली भाषा के महाकवि विद्यापति के घर नौकरी की थी महाकवि विद्यापति हिंदी साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख कवियों में से एक है जिन्हें मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाना जाता है।

वह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे उन्होंने भगवान शिव पर अनेकानेक गीतों की रचना की है महिलाओं के अनुसार जगत व्यापी भगवान शिव विद्यापति की भक्ति व रचनाओं से बेहद प्रसन्न होकर स्वयं एक दिन वेशभूषा बदलकर उनके पास चले आए उनके साथ रहने के लिए भगवान से विद्यापति के घर नौकर तक बनने के लिए तैयार थे उन्होंने अपना नाम अपना बताएं दरअसल कवि विद्यापति आर्थिक रूप से सबल नहीं थे इसीलिए उन्होंने उगना यानि भगवान शिव को नौकरी पर रखने से पहले मना कर दिया था मगर फिर शिव जी के कहने पर ही सिर्फ दो वक्त के भोजन पर उन्हें रखने के लिए विद्यापति तैयार हो गए थे ।

जब एक दिन विद्यापति राजा के दरबार में जा रहे थे तो दिन भर धूप से विद्यापति का गला सूखने लगा और आसपास जल नहीं था।  तब साथ चल रहे भगवान शिव यानि उगना को जल्दी से जल लाने को कहा। तब से थोड़ी दूर जाकर अपनी जटा खोली वह एक लोटा गंगा जल लाए। जल को पीते ही विद्यापति को गंगाजल का स्वाद आया उन्होंने सोचा की इस वन के बीच यह जल कहां से आया। इसके बाद विद्यापति ने सोचा कि कहीं स्वयं शिव तो नहीं उन्होंने शिव के चरण पकड़ लिए।

इसके बाद  भगवन शंकर ने महाकवि विद्यापति के साथ रहने की इच्छा ज़ाहिर की और उन्हें बताया कि वह उगना बनकर ही साथ रहेंगे। उनके वास्तविक रूप का किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए। इस पर विद्यापति ने भगवान शिव की सारी बातें मानी लेकिन एक दिन उगना द्वारा किसी गलती पर कवि की पत्नी शिव जी को चूल्हे की जलती हुई लकड़ी से पीटने लगे उसी समय विद्यापति वहां आ गए और उनके मुंह से निकल गया कि यह तो साक्षात भगवान शिव है और तुम ही ने मार रही हो बगैर विद्यापति के मुख से जैसी ही बात निकली तो भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।

इसके बाद अपनी भूल पर पछताते हुए कवि विद्यापति उन्होंने अपने प्रिय भक्तों की ऐसी दशा देखकर भगवान उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें समझाया कि मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकता परंतु उगना के रूप में जो तुम्हारे साथ रहा उसके प्रतीक चिह्न के रूप में अब मैं शिवलिंग के रूप में तुम्हारे पास विराजमान रहेगा इसके बाद से ही उचित स्थान पर स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हो गया इस समय आप मंदिर देखते हैं उसका निर्माण साल 1932 में हुआ है।

इसके अलावा बताया जाता है कि 1934 के भूकंप में मंदिर को कोई भी नुकसान नहीं आया था हालांकि आज मंदिर का परिसर काफी भव्य बना दिया गया है। अगर मौका लगे तो आप भी उगना महादेव मंदिर जाकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन जरूर जाये। 

और पढ़े : भगवन शिव जी की आरती  हिंदी में।



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