Kya Aap Jaante Hain Ki Bhagavan Shiv Aur Shankar Mein Kya Antar Hai.

 हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में भगवान शिव को आस्था का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में कोई भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करता है। तो कोई शिवलिंग की परंतु कालांतर में विदेशी आक्रांता ने शिवलिंग की व्याख्या गलत अर्थों में करती यानी विदेशी आक्रांता ने इस शिवलिंग को भगवान् शिव का गुप्तांग बताने लगे और सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि कुछ हिंदुओं ने भी इसे सच मान लिया और भी भगवान शिव के लिंग अर्थात शिवलिंग की पूजा करना बंद कर दिया। 

परंतु यह सच नहीं है बल्कि यह सब मात्र एक में जो ज्ञान के अभाव और भाषा ही रूपांतर के कारण समाज में फैलाया गया जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिंदी भाषा में लिंग का अर्थ गुप्तांग होता है या फिर स्त्री पुरुष के लिंग को दर्शाने के लिए किया जाता है। जबकि संस्कृत भाषा में लिंग का अर्थ प्रतीक चिन्ह होता है और भुगतान के लिए संस्कृत भाषा में शिश्न शब्द इस्तेमाल किया जाता है।

आज की इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि वास्तव में शिवलिंग क्या है और शिव शंकर में क्या अंतर है जिसका वर्णन शिवपुराण में विस्तृत रूप से किया गया है।


 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द का विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग अर्थ होता है। उदाहरण के लिए आप अर्थ शब्द को ही ले लीजिए जिस का संस्कृत में मतलब होता है धन और यही शब्द हिंदी में किसी भी शब्द का मीनिंग बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ठीक इसी तरह संस्कृत में शिवलिंग में लिंग शब्द का अभिप्राय शिव के प्रतीक चिन्ह गुण व्यवहार है।
शिवलिंग शब्द बहुत गहरा है। शिवलिंग भगवान् शिव की अनंत अस्तित्व को परिभाषित करता है। शून्य आकाश अनंत ब्रह्मांड और निराकार परम पुरुष का प्रतीक होने से शिवलिंग शब्द को प्रयोग में लाया जाता है। इसके लिए धर्म ग्रंथों की माने तो शिवलिंग वह दूरी है। जिस पर घूमती हुई पृथ्वी सहित समस्त ब्रह्मांड टिका हुआ है। इतना ही नहीं शिवलिंग को समानता का प्रतीक भी माना जाता है। अर्थात शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति अर्थात मां पार्वती के आदि अनादि एकल रूप को भी दर्शाता है। 
 
यानी यह कहा जा सकता है कि इस संसार में न केवल पुरुष का और ना केवल प्रकृति अर्थात स्त्री का वर्चस्व है। बल्कि दोनों का ही समान अस्तित्व है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है। और आत्मा उसकी ऊर्जा है उसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बनकर शिवलिंग कहलाते हैं। ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। 
 
आप सोच रहे होंगे कि भगवान शिव के इस प्रतीक यानी चीन की उत्पत्ति कैसे हुई मैं आपको बता दूं कि इसका भी वर्णन शिवपुराण में किया गया है। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार सृष्टि के आरंभ में भगवान शिव ने विष्णु जी उत्पन्न किए और फिर विष्णु जी की नाभि कमल परमपिता ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई परंतु कुछ समय बाद विष्णु जी और ब्रह्मा जी में एक बात को लेकर युद्ध छिड़ गया। इस बात को लेकर युद्ध छिड़ गया कि दोनों में शक्तिशाली कौन है यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा तब एक दिन एक स्तंभ प्रकट हुआ और फिर आकाशवाणी हुई कि जो कोई भी इस स्तंभ का दोनों छोड़ ढूंढ लेगा वही सबसे शक्तिशाली माना जाएगा। आकाशवाणी सुन भगवान विष्णु स्तंभ के नीचे का चोर ढूंढने चल पड़े और ब्रह्माजी ऊपरी छोर ढूंढने परंतु काफी समय तक ढूंढने के बाद भी दोनों को उस स्तंभ का कोई चोर नहीं मिला फिर भगवान विष्णु युद्ध स्थल पर वापस आ गए। 
 
कुछ देर बाद ब्रह्मा जी विष्णु जी के पास आ गए। परंतु ब्रह्मा जी ने खुद को शक्तिशाली साबित करने के लिए विष्णु जी से झूठ कहा कि उन्होंने उस स्तंभ का चोर ढूंढ लिया है। तभी आकाशवाणी हुई कि मैं शिवलिंग हूं मेरा ना कोई अंत है और ना ही कोई आरंभ और ऐसा माना जाता है कि तभी से शिवलिंग की उत्पत्ति हुई खैर यह तो हुई शिवलिंग से जुड़ी बात अब हम आपको बताते हैं कि शिव और शंकर में क्या अंतर है क्योंकि अधिकतर जनमानस से ही सोचते हैं कि शिव और शंकर एक ही है लेकिन यह सच नहीं है। भगवान शिव निराकार है। अर्थात उनका कोई आकार नहीं जबकि शंकर को सदा तपस्वी मूर्ति दिखाया जाता है। 
 
शिव ने ही सृष्टि की स्थापना पालना और विनाश के लिए ब्रह्मा विष्णु और शंकर तीन सुक्ष्म देवताओं की रचना की यानी शिव परमात्मा रचयिता है। इसलिए शिव जी को त्रिमूर्ति शिव भगवान भी कहा जाता है। और शंकर उनकी एक रचना है शिव ब्रह्मा लोक में प्रधान के निवासी हैं। और सुख श्लोक में रहने वाले हैं। इतना ही नहीं आप सभी ने ध्यान दिया होगा कि शिव की याद में शिवरात्रि मनाई जाती है ना कि शंकर रात्रि। 
 
शिव निराकार परमात्मा और शंकर सूक्ष्मा कारी देवता शंकर जी को ऊंचे पर्वत पर तपस्या में लीन दर्शाया जाता है। जबकि भगवान शिव ज्योति बिंदु स्वरूप हैं। जिनकी पूजा ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है। भगवान शिव सदा कल्याणकारी है जन्म मरण के चक्र या बंधन से सदा मुक्त है। जबकि शंकर सहकारी देवता है। तो आप समझ ही गए होंगे कि भगवान शिव और शंकर एक नहीं बल्कि दोनों अलग-अलग है। 
 

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